नैना देवी मन्दिर
माता सती को समर्पित नैना देवी
मन्दिर उत्तराखंड राज्य के विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सरोवर नगरी नैनीताल में
स्थित है | नैना देवी के इस मन्दिर में माता सती के नेत्रों (नयन) की पूजा
करी जाती है |
नैना देवी के भव्य मन्दिर में माँ नैना देवी
की मूर्ती को श्री मोतीराम शाह जी के द्वारा वर्ष 1842 में स्थापित
किया गया था | लेकिन वर्ष 1880 के भीषण भू-स्खलन के दौरान यह मन्दिर नष्ट
हो गया था, उसके पश्चात वर्ष 1882 में माता की दबी मूर्ती को बाहर निकालकर
पुन: नैना देवी मन्दिर का निर्माण करवाया गया | वर्तमान समय में नैनीताल के
ऊपरी भाग मल्लीताल में माँ नैना देवी का भव्य मन्दिर स्थित है | मन्दिर के
प्रांगण से नैनी झील तथा सम्पूर्ण नैनीताल का मनोरम दृश्य देखने को मिलता
है, तथा नैनी झील के किनारे माँ नैना देवी का भव्य मन्दिर सुन्दर दृश्य प्रदान
करता है | मन्दिर में नन्दाष्टमी के दिन भव्य मेले का आयोजन होता है, और
नन्दाष्टमी का यह उत्सव 8 दिनों तक मनाया जाता है |
मन्दिर के अन्दर हनुमान जी, गणेश
जी, माता काली तथा माँ नैना देवी की मूर्तियाँ स्थापित हैं | मन्दिर
प्रांगण के अन्दर ही शिवलिंग स्थापित किया गया है |
जैसा की आपको पता होगा कि नैनीताल बहुत
खुबसूरत पर्यटन स्थल है, तथा यहाँ पर वर्ष भर सैलानियों की भीड़ रहती है | यदि कोई
पर्यटक भ्रमण के लिए नैनीताल आता है, तो वह माँ नैना देवी के दर्शन अवश्य
करता है | जिससे भ्रमण के साथ-साथ यहाँ आने वाले पर्यटकों को माँ का आशीर्वाद भी
मिल जाता है |
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नैना देवी मन्दिर की पौराणिक कथा
नैना देवी मन्दिर से जुडी हुई पौराणिक कथा बहुत ही
दिलचस्प है | पौराणिक कथा के अनुसार भगवान्
शिव का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी उमा (मरणोप्रांत सती)
के साथ हुआ था | दक्ष प्रजापति शिव को पसन्द नहीं करते थे, तथा भगवान् शिव और देवी
उमा के प्रेम विवाह के पक्ष में नहीं थे, किन्तु दक्ष प्रजापति देवताओं के द्वारा
किये गए अनुरोध को माना नहीं कर पाए, और ना चाहते हुए भी शिव और देवी उमा का विवाह
उन्हें स्वीकार करना पड़ा |
एक बार दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ का
आयोजन करवाया और भगवान् शिव और देवी उमा को छोड़कर सभी देवी देवताओं को आमंत्रित
किया | भगवान् शिव का यह अपमान देखकर देवी उमा अत्यंत दुखी हो जाती हैं, और यज्ञ
स्थल में पहुँच जाती हैं | पिता द्वारा कराये गए यज्ञ में सभी देवी-देवताओं का
सम्मान और अपना तथा अपने पति परमेश्वर का अपमान देखकर देवी उमा हवनकुण्ड में यह
कहते हुए कूद जाती हैं कि आपने मेरी पति और मेरा अपमान किया है, तो हवनकुण्ड
में स्वयं को जलाकर इस यज्ञ को असफल करती हूँ |
जब भगवान् शिव को यह पता चला कि देवी
उमा ने हवन में आत्मदाह कर लिया है और मृत्यु को प्राप्त हो गयी हैं, तब शिव
क्रोधित हो उठे, और देवी उमा के जलते हुए मृत शरीर को कंधे पर उठाकर तांडव करने
लगे | तांडव प्रारंभ करते ही प्रलय आ गया और धरती उलट-पलट हो गयी | जब शिव तांडव
कर रहे थे, तब देवी सती का जलता हुआ शरीर कई भागों में विभाजित होकर धरती के
भिन्न-भिन्न स्थानों पर जा गिरा | जिस स्थान पर देवी सती के अंग गिरे उस स्थान पर शक्तिपीठ
की स्थापना हुईं |
माता सती के 51 शक्तिपीठ हैं,
जिनमे से माँ नैना देवी का मन्दिर भी एक पवित्र शक्तिपीठ है | इस स्थान पर
माता सती के नेत्र (आँख) गिरे थे, इसलिए नैनीताल में माँ नैना देवी का मन्दिर
शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है |
मान्यता है कि देवी सती की आँखों से
गिरे अश्रुयों (आंसू) की बूंदों से नैनीताल झील का निर्माण हुआ |
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धन्यवाद
3 टिप्पणियां
nice share
जवाब देंहटाएंthank you Rashmi Ji
हटाएंJai maa Naina devi
जवाब देंहटाएंIf you have any doubts, Please let me know
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