घुघुतिया पर्व के बारे में
मकर संक्रांति पर घुघुतिया नाम से मनाया जाने वाला यह पर्व कुमाऊँ मंडल का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है | मकर संक्रांति के दिन दान, स्नान, तप, पित्रों का श्राद्ध तथा मंदिरों में पूजा अर्चना करना इत्यादि सभी क्रियाकलापों को हिन्दू धर्म में शास्त्रों में विशेष महत्त्व दिया गया है | कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन दिया गया दान लाभकारी होता है, तथा पुण्य प्राप्त होता है | यही कारण है कि इस दिन दान-धर्म तथा अन्य धार्मिक कार्य किये जाते हैं |
इस पर्व के दिन एक विशेष प्रकार का व्यंजन “घुघुते” कौवे को खिलाया जाता है, तथा प्रात: काल उठकर बच्चों के द्वारा कौवों को घुघुते खिलाने के लिए एक गीत गाकर बुलाया जाता है |
काले कौआ काले घुघूती बड़ा खाले,लै कौआ बड़ा,आयु सबुनी के दिए सुनक ठुल ठुल घड़ा,
रखिये सबुने कै निरोग,सुख सम्रद्धि दिये रोज रोज |
अर्थ : काले कौवे आकर घुघूती और बड़ा खा ले, तू खाने को बड़ा ले और सभी को सोने के बड़े बड़े घड़े दे, तथा सभी लोगों को स्वस्थ रख और सभी को सम्रद्धि दे |
उत्तराखंड में क्यों मनाया जाता है घुघुतिया त्यौहार ?
घुघुतिया पर्व उत्तराखंड में क्यों मनाया जाता है, इससे सम्बंधित अनेक लोककथाएं प्रचलित हैं |
लोककथा 1
लोककथा 2
घुघुतिया त्यौहार मानाने के पीछे एक लोकप्रिय कथा यह भी है कि, कुमाऊँ में जब चन्द्र वंश के राजाओं का आधिपत्य हुआ करता था, तो उस समय राजा कल्याण चन्द की कोई संतान नहीं थी | संतान से वंचित रहने के कारण राजा अपने उत्तराधिकारी को लेकर बहुत परेशान रहते थे |
एक बार राजा कल्याण चन्द अपनी धर्मपत्नी के साथ बागनाथ मन्दिर गए और उन्होंने संतान प्राप्ति की कामना करी, और कुछ समय बाद ही राजा को संतान का शुख प्राप्त हुआ | राजा ने अपने पुत्र का नाम निर्भय चन्द रखा | राजा की पत्नी अपने पुत्र को हमेशा घुघुती नाम से पुकारा करती थी, और हमेशा अपने पुत्र के गले में मोती की माला पहना कर रखती थी | निर्भय को उस मोती की माला से अत्यधिक प्यार हो गया था | जब भी निर्भय किसी चीज को लेकर हठ करता था, तो उसकी माँ उसे डराने के लिए कहती थीं कि हठ न कर, नहीं तो तेरी माला कोवों को दे दूंगी | निर्भय को जब भी डराना होता था, तो उसकी माँ गीत गुनगुनाती थी |
“काले कौआ काले, घुघुती माला खा ले”
रानी के बुलाने पर कौवे हमेशा आ जाते थे, और रानी हमेशा कुछ न कुछ कौवों को खाने के लिए दे देती थीं | वहीँ दूसरी तरफ राजा का मंत्री राज्य को हड़पने की साजिश कर रहा था, उसने अपने साथियों के साथ मिलकर एक सड़यंत्र रचा और निर्भय का अपहरण कर लिया |
जब मंत्री निर्भय को जंगल की ओर ले जा रहा था, तब एक कौवे की नजर निर्भय पर पड़ी और वह जोर से काँव- काँव करने लगा, तभी निर्भय ने अपने गले से मोतियों की माला को निकालकर कौवे की तरफ फेंक दिया | कौवे की आवाज सुनकर साथी कोवे भी एकत्रित हो गए, और उन्होंने अपनी नुकीली चोंच से निर्भय (घुघुती) को मुक्त करवा दिया |
निर्भय की अनुपस्थिति से परेशान होकर राजमहल में सभी लोग निर्भय को ढूंडने लगे, तभी एक कौआ उड़कर आया और मोतियों की माला को राजा की तरफ फेंक दिया | राजा को संदेह हुआ कि जरुर यह कौआ निर्भय के बारे में कुछ जानता है, और कौवे के पीछे-पीछे जंगल की ओर चल दिया | निर्भय के मिलने के बाद जब राजा को पता चला कि निर्भय का अपहरण उसके मंत्री ने ही साजिश रचकर करवाया था, तब उसने मंत्री को मृत्युदंड की सजा सुनाई |
महल पहुंचकर रानी ने तरह-तरह के पकवान बनाकर कौवों को आमंत्रित किया, और उन्हें पकवान खिलाये | धीरे – धीरे यह बात सम्पूर्ण कुमाऊँ को पता चल गयी, तब से इस त्यौहार को मनाया जाता है |
यह भी जानिये -
उम्मीद करते हैं कि “उत्तराखंड सामान्य ज्ञान” की यह पोस्ट आपको पसंद आई होगी | यदि आपको हमारी यह पोस्ट पसन्द आई तो, हमसे जुड़े रहने के लिए हमारे facebook पेज को like कीजिये |
Facebook Page Link
यदि आप उत्तराखंड की मनमोहक तस्वीरें देखना चाहते हैं, तो “उत्तराखंड सामान्य ज्ञान” के instagram पेज को follow कीजिये |
Instagram Link
धन्यवाद
0 टिप्पणियां
If you have any doubts, Please let me know
Emoji