Festivals of Uttarakhand / उत्तराखंड के प्रमुख त्यौहार
- हरेला
- फूलदेई
- घुघुतिया पर्व
- घी त्यार / घी संक्रांति
- खतडुआ
- गंगा दशहरा
- वट सावित्री पर्व
- बसंत पंचमी
- रक्षाबंधन
हरेला
उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में हरेला का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है | हरेला शब्द का तात्पर्य हरियाली से है | यह पर्व वर्ष में तीन बार चैत्र, श्रावण तथा अषाढ़ के शुरू होने पर मनाया जाता है | श्रावण के पहले दिन मनाये जाने वाले हरेले को अधिक महत्त्व दिया जाता है |
इस पर्व के लिए हरेला से 8 -10 दिन पहले से ही पूजा के स्थान पर किसी जगह मिट्टी बिछा कर उसमे 7 प्रकार के बीजों (गेहूं,जौ,गहद,सरसों,मूंग,उड़द तथा भट्टा) को बोया जाता है, तथा इन दिनों प्रत्येक दिन इनमे पानी दिया जाता है, और उनकी गुडाई की जाती है | अंकुरित हुए बीज जब फसल का रूप ले लेते हैं, तो हरेले के दिन इस फसल की कटाई की जाती है |
अंकुरित होने के बाद बने पौधों को ही हरेला कहा जाता है | हरेला को अच्छी फसल का सूचक माना जाता है, तथा इसी कामना के साथ बोया जाता है, कि आगामी फसलों को नुकसान ना हो |
फूलदेई
फूलदेई पर्व उत्तराखंड के प्रमुख पर्वों में से एक है, तथा इसे भी यहाँ के लोगों द्वारा बहुत धूमधाम से मनाया जाता है | फूलदेई पर्व को “फूल संक्रांति” के नाम से भी जाना जाता है | इस पर्व का सीधा सम्बन्ध प्रकृति से है, जब यह पर्व मनाया जाता है, तब उत्तराखंड में चारों ओर खिले हुए फूल प्रकृति की सोभा को बढ़ाते हैं |
हिन्दू कलैंडर के अनुसार चैत्र मास ही नववर्ष होता है, तथा उत्तराखंड में चैत्र मास की संक्रांति अर्थात पहले दिन से ही बसंत आगमन की खुशी में फूलदेई का त्यौहार मनाया जाता है | इस पर्व को बसंत ऋतु के स्वागत का प्रतीक माना जाता है | फूलदेई को “रोग निवारक औषधि संरक्षण” दिवस के रूप में भी मनाया जाता है |
इस पर्व के मौके पर बच्चों के द्वारा गीत गाये जाते हैं |
फूल देई, छम्मा देई
देणी द्वार, भर भकार
ये देली स बारम्बार नमस्कार
फूले द्वार ......फूल देई छम्मा देई
घर की समृद्धि के लिए बच्चों के द्वारा गाये गए इस गीत के बाद घर के मालिक द्वारा बच्चों को चावल, गुड, भेंट या अन्य उपहार दिया जाता है |
घुघुतिया पर्व
मकर संक्रांति पर घुघुतिया नाम से मनाया जाने वाला यह पर्व कुमाऊँ मंडल का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है | इस पर्व के दिन एक विशेष प्रकार का व्यंजन “घुघुते” कौवे को खिलाया जाता है | इस दिन प्रात: काल उठकर बच्चों के द्वारा कौवों को घुघुते खिलाने के लिए एक गीत गाकर बुलाया जाता है |
काले कौआ काले घुघूती बड़ा खाले,
लै कौआ बड़ा,आयु सबुनी के दिए सुनक ठुल ठुल घड़ा,
रखिये सबुने कै निरोग,सुख सम्रद्धि दिये रोज रोज |
अर्थ : काले कौवे आकर घुघूती और बड़ा खा ले, तू खाने को बड़ा ले और सभी को सोने के बड़े बड़े घड़े दे, तथा सभी लोगों को स्वस्थ रख और सभी को सम्रद्धि दे |
इसके अलावा भी कई गीत घुघुतिया पर्व के अवसर पर गाये जाते हैं |
घी त्यार / घी संक्रांति
घी संक्रांति का यह पर्व कुमाऊँ तथा गढ़वाल दोनों मंडलों में ही बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है | कूमाऊँ में इस पर्व को घी-त्यार तथा गढ़वाल में घी-संक्रांद के नाम से जाना जाता है | यह पर्व उत्तराखंड में मनाये जाने वाले हरेला पर्व से सम्बंधित है | हरेला में बीजों को बोया जाता है, तथा बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है | वहीँ पर घी-त्यार अंकुरित हो चुकी फसलों पर बालियों के आ जाने पर मनाया जाने वाला त्यौहार है |
बरसात के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में जब बालियाँ आने लग जाती हैं, तब अच्छी फसल की कामना करते हुए किसान यह पर्व बहुत धूमधाम से मनाते हैं | इस पर्व का मुख्य व्यंजन बेडू की रोटी तथा अरबी के बिना खिले पत्ते जिन्हें गाबा कहते हैं की सब्जी हैं |
उड़द की दाल को भिगोकर उसे पीसकर बनायीं गयी पिट्टी से भरवा रोटी बनायीं जाती है, जिसे बेडू की रोटी कहा जाता है |
खतडुआ
भैल्लो जी भैल्लो, भैल्लो खतडुआ,
गै की जीत, खतडुए की हार,
भाग खतडुआ भाग ...
इसका अर्थ है कि गाय की जीत हो और खतडुए की हार हो | खतडुए की हार से तात्पर्य है कि पशुधन को लगने वाली बीमारीओं की हार हो |
इस पर्व में पशुधन की कुशलता की कामना की जाती है | इस दिन लोग अपने अपने पशुओं की गौशालाओं की अच्छी तरह से सफाई करते हैं, तथा पशुओं को नहला धुला कर, उन्हें सजाकर तरह-तरह के पकवान खिलाये जाते हैं | जिससे उनके पशु अनेक प्रकार की बीमारीओं से सुरक्षित रहें |
गंगा दशहरा
गंगा दशहरा पर्व उत्तराखंड राज्य में अत्यंत हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है | इस दिन घर तथा मंदिरों की चौखटों पर द्वार पत्र लगाये जाते हैं | इन द्वार पत्रों को पुरोहितों द्वारा स्वम् अपने हाथों से बनाकर जजमान को दिया जाता है, और बदले में जजमानों द्वारा पुरोहित को दक्षिणा देने की प्रथा है |
मान्यताओं के अनुसार पुरोहितों द्वारा दिए गए द्वार पत्रों को घरों तथा मंदिरों में लगाने से प्राकृतिक आपदाओं से घरों की रक्षा होती है, इसलिए इन द्वार पत्रों को घर का सुरक्षा कवच भी माना जाता है |
गंगा दशहरा के दिन प्रात: काल होते ही लोग हरिद्वार, देवप्रयाग, बागेश्वर, रामेश्वर तथा थल सहित अन्य तीर्थ स्थलों व संगम स्थलों में स्नान करते हैं, तथा पुण्य अर्जित करते हैं |
वट सावित्री पर्व
हिन्दू धर्म में पति की दीर्घायु के लिए वट सावित्री पर्व मनाया जाता है, इस पर्व में महिलाएं अपने पतियों के लिए उपहास रखती हैं | हर्षोल्लास के साथ मनाये जाने वाले इस पर्व में महिलाएं बरगद के पेंड के चारों ओर पूजा करती हैं, और पेंड की परिक्रमा करती हैं |
पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि, वट के वृक्ष ने अपनी जटाओं में सावित्री के पति सत्यवान के मृत शरीर को जकड कर सुरक्षित रखा था, ताकि सत्यवान के मृत शरीर को कोई नुकसान ना पहुँचा सके | कहा जाता है कि बरगद के वृक्ष पर भ्रम्मा, विष्णु तथा महेश का वास होता है, इसलिए वट के वृक्ष की पूजा करने पर पति की दीर्घायु के साथ – साथ उत्तम स्वास्थ की प्राप्ति होती है |
बसंत पंचमी
बसंत पंचमी को बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है, तथा बसंत पंचमी का यह त्यौहार उत्तराखंड में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है | इस दिन माता सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है | यह त्यौहार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है |
लोगों का मानना है कि बसंत पंचमी के अवसर पर बच्चों की विद्या का आरम्भ करवाना शुभ माना जाता है | इस दिन विद्यार्थी,लेखक तथा साहित्य से जुड़े सभी लोग माँ सरस्वती की आराधना तथा वंदना करते हैं | बसंत पंचमी के अवसर पर लोग पीले वस्त्र धारण करके हल्दी से सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं, और हल्दी का ही तिलक लगते हैं |
रक्षाबंधन
प्रत्येक वर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला रक्षाबंधन का त्यौहार सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है , किन्तु उत्तराखंड में राखी के इस त्यौहार को उत्तराखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक त्यौहार माना जाता है | पवित्रता के प्रतीक रक्षाबंधन के त्यौहार में बहन अपने भाईयों की कलाई में रक्षासूत्र बांधती हैं, और बदले में भाई अपनी बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं |
उत्तराखंड के प्रमुख त्योहारों में यह त्यौहार इसलिए प्रमुख है, क्योंकि इस दिन भाई बहनों के अलावा उत्तराखंड राज्य में पुरोहित तथा जजमान आपस में एक दूसरे को रक्षासूत्र बांधते हैं, और एक दूसरे के कल्याण और उन्नति की कामना करते हैं |
रक्षाबंधन के इस पवित्र त्यौहार के दिन उत्तराखंड में पेंड़ों को भी राखी बाँधी जाती है, क्योंकि प्रकृति भी जीवन की रक्षक है, और पेंड पौधे प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्यों की रक्षा करने में सहायक होते हैं |
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