बद्रीनाथ मन्दिर का इतिहास
बद्रीनाथ जी की प्रतिमा को आदि शंकराचार्य जी के द्वारा नारद कुंड से खंडित अवस्था में निकाली गयी थी | वर्तमान में बद्रीनाथ मन्दिर में भगवान् विष्णु जी की काले रंग की मूर्ती खंडित अवस्था में ही है | यह मूर्ती कई वर्षों तक नारद कुंड में रहने के कारण खंडित हो गयी थी |
पुराणों के अनुसार बद्रीनाथ मन्दिर की स्थापना सतयुग से मानी जाती है | बद्रीनाथ धाम का उल्लेख भगवत पुराण, स्कन्द पुराण तथा महाभारत में भी है | बेर (बदरी) के घने वन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम बद्रीनाथ पड़ा |
About Badrinath Dham (बद्रीनाथ धाम के बारे में)
भगवान् विष्णु जी को समर्पित बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे, प्राकृतिक वादियों के बीच स्थित है | यह उत्तराखंड के चार धामों में से एक धाम, तथा उत्तराखंड के पंच बद्रीयों में से एक बद्री बद्रीनाथ मन्दिर है, जिसे विशाल बद्री के नाम से भी जाना जाता है | उत्तराखंड में स्थित पंचबद्री, पंचकेदार तथा पंचप्रयाग पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं |

बद्रीनाथ मन्दिर तीन भागों में बंटा हुआ है –
- सिंह द्वार
- मंडल
- गर्भगृह
Badrinath Temple (Height)
अत्यधिक ऊँचे नीलकंठ पर्वत शिखर के भव्य पृष्ट पट सहित, नर एवं नारायण नामक दो पर्वत श्रंखलाओं के पार्श्व में स्थित बद्रीनाथ/बद्रीनारायण मन्दिर की ऊँचाई समुद्रतल से 3133 मीटर है | भगवान् विष्णु का यह भव्य मन्दिर अलकनंदा नदी के तट पर प्राकृतिक सौन्दर्य के बीचोबीच स्थित है |
बद्रीनाथ मन्दिर का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा ?
बद्रीनाथ मन्दिर का नाम बद्रीनाथ पड़ने के पीछे बहुत ही रोचक कथा है | बताया जाता है कि, एक बार देवी लक्ष्मी बिष्णु भगवान् जी से रुष्ट होकर अपने मायके चली गयी थीं, तब भगवान् विष्णु जी ने उनको मनाने के लिए तपस्या प्रारंभ कर दी थी, ताकि देवी लक्ष्मी उनके पास बापस लौट आयें |
जब देवी लक्ष्मी जी की नाराजगी दूर हई तो वह भगवान विष्णु जी को ढूंडते हुए उस स्थान पर पहुँच गयीं, जहाँ भगवान् विष्णु तपस्या कर रहे थे | उन्होंने देखा की विष्णु जी बदरी(बेर) के वन में बदरी के पेंड पर बैठकर तपस्या कर रहे थे | इसीलिए देवी लक्ष्मी ने विष्णु भगवान् को बद्रीनाथ का नाम दिया था |
यही कारण है कि विष्णु जी को समर्पित इस मन्दिर को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है |
Story of Badrinath Temple in Hindi
कहानी -1
माँ गंगा जब पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं, तब गंगा का वेग बहुत प्रबल था | अत्यधिक प्रबल वेग के कारण पृथ्वी पर होता विनाश देखकर माँ गंगा 12 अलग-अलग धाराओं में विभाजित हो गयी, जिसमे से एक पवित्र धारा अलकनंदा भी है |विष्णु भगवान् जी का निवास स्थान इसी अलकनंदा नदी के तट पर होने के कारण यह स्थान बद्रीनाथ कहलाया, और यहाँ पर स्थित भगवान् विष्णु जी का यह मन्दिर बद्रीनाथ मन्दिर के नाम से जाना जाने लगा | माना जाता है की भगवान् विष्णु जी की मूर्ति इस स्थान पर देवताओं के द्वारा स्थापित की गयी थी |
कहानी -2
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बद्रीनाथ मन्दिर की एक कहानी यह भी है कि, जब भगवान् विष्णु इस स्थान पर तपस्या में लीन थे, तब बहुत अधिक मात्रा में यहाँ पर हिमपात होने लगा था | यह दृश्य देख देवी लक्ष्मी ने भगवान् विष्णु के समीप बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप धारण कर लिया, और सम्पूर्ण हिमपात को अपने ऊपर सहने लगीं |
वर्षों बाद जब भगवान् विष्णु तपस्या करके उस स्थान से उठे, तब उन्होंने देवी लक्ष्मी से कहा कि तुमने भी मेरे बराबर ही तप किया है, इसलिए आज से बद्रीनाथ धाम में मुझे तुम्हारे साथ ही पूजा जाएगा | तभी से बद्रीनाथ धाम में भगवान् विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा एक साथ की जाती है |
मान्यता है कि बद्रीनाथ मन्दिर में मांगी हुई मुराद भगवान् विष्णु अवश्य पूरी करते हैं |
Badrinath Temple Yatra (बद्रीनाथ यात्रा)
बद्रीनाथ यात्रा उत्तराखंड की प्रसिद्ध चार धाम यात्रा के अंतर्गत आती है | इस यात्रा के दौरान बद्रीनाथ दर्शन अर्थात भगवान् विष्णु जी के दर्शन किये जाते हैं | बद्रिनाथ मन्दिर आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था | यह मन्दिर उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के तट पर नर-नारायण नामक पर्वत श्रंखलाओं के बीच में स्थित है |
पुराणों में इस तीर्थ को योगसिद्धा, मुक्तिप्रदा, बद्रीवन,नर-नारायण आश्रम तथा बद्रिकाश्रम इत्यादि नामों से संबोधित किया है |
बद्रीनाथ यात्रा के दौरान बद्रीनाथ के दर्शनीय स्थल पंच धारा, पंच शिला, पंच कुंड तथा माता मूर्ती का मन्दिर हैं | माता मूर्ती मन्दिर माणा गाँव (भारत का अंतिम गाँव) से 3 किलोमीटर दूर स्थित है |
बद्रीनाथ मन्दिर पहुँचने के लिए ऋषिकेश – श्रीनगर – रुद्रप्रयाग – कर्णप्रयाग – नंदप्रयाग – जोशीमठ – बद्रीनाथ मार्ग होकर जाना होता है | ऋषिकेश से बद्रीनाथ धाम की दूरी लगभग 297 किलोमीटर है |
Google Map for Badrinath Temple
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