Kedarnath Temple (केदारनाथ मन्दिर)
केदारनाथ
,भगवान् शिव के बारह जियोतिर्लिंगों में से ग्यारहवां जियोतिर्लिंग माना जाता है | केदारनाथ मन्दिर
हिमालय के सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है | केदारनाथ मन्दिर का निर्माण 10 वीं तथा 12
वीं सताब्दी माना जाता है | यह मन्दिर गढ़वाल हिमालय के रुद्रप्रयाग जिले में 3584
मीटर की ऊँचाई पर स्थित है | केदारनाथ मन्दिर में भगवान् शिव के पृष्ठ भाग (पीठ)
की पूजा की जाती है | यह मन्दिर मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है जो कि आगे जाकर
रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिल जाती है | इस मन्दिर के निकट वासुकी ताल तथा
चौडबाड़ी ताल इस मन्दिर की यात्रा को आस्था
के साथ साथ मनोरंजक भी बनाते हैं |
मन्दिर के कपाट हर साल अप्रैल माह में खुल जाते हैं तथा अक्टूबर माह में बंद हो जाते हैं | कपाट बंद होने का मुख्य कारण यहाँ तेज बर्फवारी है | बर्फ गिरने से मन्दिर तथा मन्दिर परिसर बर्फ की सफ़ेद चादर से ढक जाता है | शीत ऋतु में जब केदारघाटी बर्फ से ढकी होती है तब भगवान् केदारनाथ की पूजा उखीमठ के ओंकारेश्वर मन्दिर में होती है|
Tungnath Temple (तुंगनाथ मन्दिर)
तुंगनाथ
पंचकेदार के अंतर्गत तृतीय केदार माना जाता है | यह मन्दिर रुद्रप्रयाग जिले में
उखीमठ से गोपेश्वर मार्ग पर चोपता नामक स्थान से 8 किलोमीटर की दूरी पर 3600 मीटर
की ऊँचाई पर स्थित है | यह मन्दिर विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित भगवान् शिव
का मन्दिर है | तुंगनाथ मन्दिर पर भगवान् शिव के हाथ की पूजा की जाती है |
तुंगनाथ
मन्दिर की वास्तुशिल्प शैली गुप्तकाशी और केदारनाथ मंदिरों के समान है | मन्दिर का
पवित्र भाग “काली रौक” है , जो स्वम प्रकट लिंग है | तुंगनाथ मन्दिर के बारे में
यह माना जाता है की यह मन्दिर पांडवों द्वारा भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए
बनाया गया था, जो की कुरुक्षेत्र में भारी मात्रा में रक्तपात से नाराज थे |
चोपता
से तुंगनाथ की पैदल यात्रा मखमली बुग्यालों से होकर जाती है | मन्दिर से 1.5
किलोमीटर की चढ़ाई करने के बाद चंद्रशिला स्थित है जहाँ से देखने पर हिमालय का 270
डिग्री का मनोरम दृश्य दिखता है | शीतकाल में जब तुंगनाथ मन्दिर बर्फ की सफ़ेद
चादरों से ढका रहता है तब भगवान् तुंगनाथ की पूजा मक्कूमठ नामक स्थान पर होती है |
Rudranath Temple (रुद्रनाथ मन्दिर)
रुद्रनाथ
मन्दिर भगवान् शिव को समर्पित हिन्दू मन्दिर है | रुद्रनाथ पंचकेदार के अंतर्गत
चतुर्थ केदार है , तथा इसे पितृ-तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है | रुद्रनाथ
मन्दिर समुद्र तल से 3600 मीटर(1180 फीट) की ऊँचाई पर अलकनंदा तथा मन्दाकिनी नदी
के तट पर स्थित है | इस मन्दिर में भगवान्
शिव के रौद्र मुख की पूजा की जाती है | इस मन्दिर तक पहुचने के लिए गोपेश्वर से 8 किलोमीटर दूर सागर
गाँव से 18 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है | पैदल यात्रा के दौरान रास्ते
में बहुत ही सुन्दर और रमणीय बुग्याल देखने को मिलते हैं , जिनमे से पुंग बुग्याल
और पनार बुग्याल पड़ते हैं |
Jageshwar Temple (जागेश्वर मन्दिर)
जागेश्वर मन्दिर उत्तराखंड के प्रमुख
देव स्थानो में से प्रमुख तीर्थ स्थान है | जागेश्वर मन्दिर कुमाऊँ मंडल के
अल्मोड़ा जिले से 38 किलोमीटर की दूरी पर देवदार के घने जंगलों के बीच स्थित है |
जागेश्वर मन्दिर को उत्तराखंड का पांचवा धाम भी कहा जाता है | किवदंती के
अनुसार भगवान् शिव इसी स्थान का प्रयोग ध्यान लगाने के लिए किया करते थे | जब यह
बात स्थानीय महिलाओं को पता चली तो महिलाओं ने भगवान शिव के दर्शन पाने के लिए
वहां पर भीड़ इकट्ठी कर ली | जब पुरुषों को यह बात पता चली तो वहां के पुरुष
क्रोधित हो उठे और तपस्वी को खोजने लगे जिसने वहां की सभी महिलाओं को मोहित कर
लिया था | स्थिति को नियंत्रित करने हेतु भगवान् शिव ने एक बालक का रूप धारण कर
लिया | तभी से इस स्थान में भगवान् शिव की पूजा “बाल जागेश्वर” के रूप में की जाने
लगी |
इस मन्दिर समूह का निर्माण 8 वी और 10 वी सताब्दी में कत्यूरी राजाओं के द्वारा करवाया गया था , परन्तु लोगों का मानना यह भी है की इस मन्दिर का निर्माण पांडवों के द्वारा करवाया गया था | इतिहासकारों के अनुसार इस मन्दिर का निर्माण कत्यूरी तथा चंद शासकों के द्वारा हुआ है |यह भी कहा जाता है की इनमे से कुछ मंदिरों का निर्माण आदि संकराचार्य के द्वारा करवाया गया था , किन्तु जागेश्वर मन्दिर समूह के निर्माण से सम्बन्धित कोई भी तथ्य स्पष्ट नहीं है|
जागेश्वर मन्दिर का इतिहास तथा मान्यताएं
Binsar Mahadev Temple (बिनसर महादेव मन्दिर)
बिनसर महादेव
मन्दिर उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित पर्यटन स्थल रानीखेत से लगभग 20
किलोमीटर दूर भगवान् शिव का एक बहुत ही सुन्दर तथा भव्य मन्दिर है | समुद्र तल से
मन्दिर की ऊँचाई 2480 मीटर है , तथा यह मन्दिर चरों तरफ से देवदार के घने जंगलों
से घिरा हुआ है | यह मन्दिर कुन्ज नदी के तट पर स्थित है | भगवान् शिव को समर्पित
इस मन्दिर का निर्माण 10 वी सताब्दी में किया गया था | बिनसर महादेव मन्दिर
क्षेत्र के लोगों का अपार श्रद्धा का केंद्र है क्योंकि यह भगवान् शिव और मातापार्वती का पवित्र स्थल माना जाता है |
बिनसर महादेव मन्दिर की एक मान्यता यह भी है कि सौनी बिनसर के निकट किरौला गाँव में 65 वर्षीय बिना संतान के वृद्ध रहते थे | सपने में उन्हें एक साधू ने दर्शन दिए और कहा कि कुन्ज नदी के तट पर झाड़ियों में एक शिवलिंग पड़ा है उसे प्रतिष्ठित कर मन्दिर का निर्माण करो | उस वियक्ति ने आदेश पाकर मन्दिर का निर्माण करवाया और उसे पुत्र की प्राप्ति हुई | पूर्व में इस स्थान पर एक छोटा मन्दिर स्थापित किया गया था |
वर्ष 1959 में
श्री पंच दशनाम जूना अखाडा से जुड़े भ्रमालीन नागा बाबा मोहन गिरी के नेतृत्व में इस भव्य मन्दिर का जीर्णोधार
प्रारम्भ किया गया | इस मन्दिर में वर्ष 1970 से अखण्ड ज्योति जल रही है |
बिनसरमहादेव मन्दिर का इतिहास एवं मान्यताएं
Mukteshwar Mahadev Temple (मुक्तेश्वर महादेव मन्दिर)
मुक्क्तेश्वर
महादेव मन्दिर नैनीताल जिले में स्थित एक बहुत ही प्राचीन शिव मन्दिर है जो कि
मुक्क्तेश्वर के सर्वोच्च बिंदु पर स्थित है | समुद्र तल से इस मन्दिर की ऊँचाई
लगभग 2315 मीटर है | पुराणों में शालीनता के रूप में यह भगवान शिव के 18 मुख्य
मंदिरों में से एक है | यह मन्दिर “मुक्क्तेश्वर महादेव मन्दिर” के नाम से
प्रसिद्ध है |
इस मन्दिर में
तांबा योनी के साथ सफ़ेद संगमरमर का एक शिवलिंग है, जो कि भ्रम्मा,विष्णु,पार्वती,हनुमान,
गणेश तथा नन्दी की मूर्तियों से घिरा हुआ है | इस मन्दिर में प्रवेश करते ही
मनुष्य को मानसिक शान्ति का अनुभव होता होता है |
मुक्क्तेश्वर
अंग्रेजो के समय से बना हुआ उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित एक हिल स्टेशन है
| मुक्क्तेश्वर को “भगवान् शिव का घर “ माना जाता है | यहाँ पर भगवान् शिव का एक
मन्दिर है जो 10 बी सताब्दी में कत्तियूरी राजाओं
के द्वारा मात्र एक दिन में बनाया गया था, जो की अविस्वस्नीय है |
मुक्क्तेश्वर देवदार, बांज, तिलोंज
,काफल तथा पाइन के घने जंगलों से चारों तरफ से घिरा हुआ है |
मुक्क्तेश्वर महादेव मन्दिर का इतिहास तथा मुक्क्तेश्वर में स्थित चौली की जाली की मान्यताएं
Baijnath Temple (बैजनाथ मन्दिर)
बैजनाथ मन्दिर
उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में गरुण तहसील में स्थित भगवान् शिव को समर्पित
एक मुख्य मन्दिर है | यह मन्दिर गरुण से 2 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित
है | बैजनाथ मन्दिर लगभग 1000 साल पुराना है | इस मन्दिर के बारे में बताया जाता
है की यह मन्दिर कत्त्युरी राजाओं द्वारा मात्र एक दिन में बनाया गया था |
बैजनाथ को
पहले “कार्तिकेयपुर” के नाम से जाना जाता था , जो कि 12 वीं और 13 वीं सताब्दी में
कत्यूरी राजाओं की राजधानी हुआ करती थी |
हिन्दू धर्म
में बैजनाथ मन्दिर का बहुत महत्त्व है क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान् शिव
और माता पार्वती का विवाह गोमती और गरुण गंगा नदी के संगम पर हुआ था |
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1 टिप्पणियां
very informative article
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